लखनऊ: लोकसभा सीट कन्नौज इन दिनों से सुर्खियों में हैं। यहां सपा मुखिया अखिलेश यादव का मुकाबला भाजपा के सुब्रत पाठक से है। लंबे समय तक सीट पर सपा का कब्जा है। मौजूदा समय सीट सुब्रत के पाले में हैं। दोबारा इस सीट पर कब्जा बरकरार रखना सुब्रत के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। वहीं अखिलेश के सामने विरासत और अस्तित्व बचाने की चुनौती है।
वर्ष 1998 में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने युवा प्रदीप यादव को पहली बार सपा प्रत्याशी के रुप में उतारा था। मुलायम सिंह के रसूक के चलते प्रदीप यादव ने जीत दर्ज की। इसके अगले साल 1999 में कन्नौज और संभल से मुलायम सिंह ने चुनाव लड़ा। दोनों सीटों से चुनाव जीतने पर मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज सीट से इस्तीफा दिया और 2000 में हुए उपचुनाव में बेटे अखिलेश यादव को पहली बार सियासी रण में उतारा, तो अखिलेश ने जीत दर्ज की।
लगातार तीन बार दर्ज की थी जीत
वर्ष 2000 के बाद 2004 और 2009 में अखिलेश ने जीत दर्ज की। इसके बाद प्रदेश का मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद इस सीट से अखिलेश ने इस्तीफा दिया, तो 2012 में हुए उप चुनाव में पत्नी डिंपल यादव को निर्विरोध सांसद बनवाया। डिंपल यादव ने इसके बाद 2014 का चुनाव जीता।
2009 में अखिलेश यादव और 2014 में डिंपल से पराजित हुए भाजपा के सुब्रत पाठक ने 2019 में पूरी दमदारी से चुनाव लड़ा और डिंपल को हार का सामना करना पड़ा। इस बार सुब्रत के सामने लोकसभा सीट को अपने पक्ष में रखने के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है कि क्योंकि उनका मुकाबला अखिलेश यादव से है।
चुनाव राह आसान बनाने के लिए सुब्रत पाठक ने सपा के कई नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया। इससे अखिलेश यादव से उनका कांटे का मुकाबला होगा। वहीं बीते पांच साल में सपा के गढ़ पर पूरी तरह से भाजपा का कब्जा है। इससे अखिलेश के सामने विरासत की सीट और खुद का अस्तित्व बचाने की चुनौती है।